रामसमुझ यादव
मुंबई: 1980 के दशक में मरोळ गांव में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए अधिग्रहित की गई भूमि के मामले में वाडिया ट्रस्ट को मुंबई हाई कोर्ट से महत्वपूर्ण राहत मिली है। अदालत ने ट्रस्ट को अधिक मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिससे ट्रस्ट को साढ़े तीन दशकों बाद लाखों रुपये का अतिरिक्त मुआवजा मिलेगा। यह मामला 1988 में दाखिल किए गए दो मुकदमों से संबंधित है, जिनमें भूमि अधिग्रहण अधिकारियों द्वारा तय की गई मुआवजे की राशि को लेकर विवाद था।
अधिकारियों ने बाजार मूल्य के आधार पर मुआवजे की उचित दर निर्धारित नहीं की थी, जिसे लेकर वाडिया ट्रस्ट ने कोर्ट में दावा किया था। ट्रस्ट का कहना था कि भूमि अधिग्रहण अधिकारियों ने मुआवजे के मूल्य निर्धारण में गंभीर त्रुटियां की थीं और यह उचित मूल्य नहीं था।
न्यायाधीश मिलिंद जाधव ने बुधवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए ट्रस्ट के पक्ष में निर्णय लिया। कोर्ट ने कहा कि ट्रस्ट को उचित और बाजार मूल्य के आधार पर मुआवजा मिलने का हक है। अदालत ने ट्रस्ट के 10 भूखंडों के लिए प्रति वर्ग मीटर 74 रुपये से लेकर 169 रुपये तक का मूल्य निर्धारित किया। इसके अलावा, भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना की तारीख और कब्जा लेने की तारीख के बीच की अवधि के लिए वार्षिक 12 प्रतिशत ब्याज का भी आदेश दिया गया।
वाडिया ट्रस्ट के वकील, एडवोकेट चैतन्य चव्हाण, एडवोकेट लेवी रूबेन्स, एडवोकेट नील पटेल और एडवोकेट योहान रूबेंस ने अदालत में ट्रस्ट के पक्ष में मजबूत दलीलें पेश कीं। उन्होंने यह साबित किया कि भूमि अधिग्रहण अधिकारियों ने मुआवजे के मूल्य निर्धारण में कई महत्वपूर्ण पहलुओं को नजरअंदाज किया था। ट्रस्ट की ओर से यह भी दावा किया गया कि 1986 में भूमि अधिग्रहण के बाद मुआवजे की दरों में वृद्धि होनी चाहिए थी, क्योंकि तब भूमि अधिग्रहण अधिनियम में धारा 25 में संशोधन हुआ था।
वाडिया ट्रस्ट की यह जीत न केवल मुआवजे की राशि में बढ़ोतरी का कारण बनेगी, बल्कि यह अन्य ऐसे मामलों के लिए भी एक मिसाल बन सकती है, जहां भूमि अधिग्रहण के मामले में उचित मुआवजे की मांग की जाती है।
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