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नवरात्रि विशेष : देवी का अष्टम स्वरूप महागौरी

नवरात्रि का आज अष्टम दिवस है। श्रद्धालु आज देवी के महागौरी स्वरूप का पूजन करेंगे। स्पष्ट कर दूं कि अष्टमी का पूजन अर्थात महानिशापूजा आज ही रात्रि में की जायेगी। जो नव दिनों का व्रत कर रहे है वो लगातार नव दिनों तक करते रहेंगे। परन्तु जिन्हें केवल अष्टमी का व्रत रखना है वो अष्टमी व्रत को कल 11 अक्टूबर 2024 दिन शुक्रवार को रखेंगे। 

कल सप्तमी को समस्त देवी पंडालों के पट खुल चूके है। जिस पल की प्रतीक्षा सभी कर रहे थे वो घड़ी आ गयी है। मन्दिरों के अलावा पूजा पंडालों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी है। दर्शन हेतु सभी आतुर दिख रहे है। दिनों से स्वप्न सजाये बच्चे मेले घूमते समय उत्साह व उमंग में सराबोर दिख रहे हैं। विद्यालयों की लगभग छुट्टियाँ हो चुकी है। कार्यालयों में भी कर्मचारियों की छुट्टी हो चुकी है। कुछ लोग घर से दूर काम करते है वो परिवार के साथ त्यौहार मनाने अपने घर आये है। वैदिक मंत्रोच्चार एवं आरती से सभी के हृदय में नव ऊर्जा का संचार व्याप्त है। देवी की पूजा श्रद्धालु अपने यथाशक्ति यथा भावानुसार अपने-अपने तरीके से करते है। वहीं अलग-अलग प्रान्तों में भी इस पूजन की अलग धूम रहती है। लोग क्षेत्रीय विविधताओं के साथ इसे मनाते हैं। जैसे गुजरात की बात करें तो विशेष रूप से डांडिया और गरबा खेलकर नवरात्रि का उत्सव मनाया जाता हैं। डांडिया तथा गरबा अब तो चारों तरफ खेला जाने लगा है। मैसूर की बात करें तो दशहरा में राजपरिवार द्वारा माँ चामुंडेश्वरी की पूजा की जाती है, जिन्हें माँ दुर्गा की महिषासुरमर्दिनी रूप माना जाता है। इस अवसर पर शाही तलवार की भी पूजा होती है। यह शस्त्र पूजन सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक है। पश्चिम बंगाल की दुर्गा-पूजा का एक अलग रूप है। दुर्गा पूजा के दौरान यहाँ कुछ प्रसिद्ध कार्यक्रम हैं - पुष्पांजलि, सिंदूर खेला आदि। पिछले कुछ वर्षों में विशेष क्षेत्रीय पूजन को श्रद्धालु अपने क्षेत्रों में भी श्रद्धा व विश्वास के साथ अपना रहे एवं धूमधाम से मना रहे है। आपसभी अपने लोकप्रिय समाचार-पत्र में आज पढिये देवी महागौरी के स्वरूपादि के बारे में।


                 ध्यान मन्त्र:-

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

 महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।


माँ दुर्गा का अष्टम स्वरुप महागौरी है। देवी का रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। महा+गौरी - महागौरी। गौर वर्ण में ये महान है अर्थात इनके समान कोई दूसरा गौर नहीं है। इसी गौर वर्ण के कारण इन्हे महागौरी के नाम से जाना जाता है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल सम मानी गयी है। देवी महागौरी की आयु आठ साल की मानी गई है। इनके समस्त आभूषण और वस्त्र भी सफेद हैं। देवी के चार भुजाएँ हैं। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले वाम हस्त में डमरू है और नीचे के वाम हस्त वर-मुद्रा में हैं। देवी का वाहन वृषभ है इसीलिए इनका एक नाम वृषारूढ़ा भी है। 

देवी महागौरी की कथा--

देवीभागवत पुराण के अनुसार, माता पार्वती शिवजी को पति के रुप में प्राप्त करना चाहती थी। उन्होंने कठिन तप किया। प्रारंभ में माता तपस्या के दौरान केवल कंदमूल व फल का आहार लेती थीं। जब शिवजी प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होंने केवल पत्तों का आहार करना शुरू कर दिया। फिर भी उनकी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई तो माता केवल वायु पीकर ही घोर तपस्या करने लगीं। कठिन तपस्या से देवी का शरीर काला पड़ गया। देवी के इस तपस्या को देख शिवजी बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने देवी के शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए ये महागौरी कहलाईं। 


देवी महागौरी की शक्ति --

माँ दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से सोमचक्र जागृत होता है और इनकी कृपा से हर असंभव कार्य पूर्ण हो जाते हैं। देवी भागवत पुराण के अनुसार माँ के नव रूपों और दस महाविद्या सभी आदिशक्ति के अंश तथा स्वरूप हैं। देवाधिदेव महादेव के साथ उनकी अर्धांगिनी रूप में देवी महागौरी हमेशा ही विराजमान रहती हैं। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। महागौरी का पूजन शीघ्र फलदायी हैं और पूजन से भक्तों के तमाम पाप धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती हैं।


 देवी महागौरी को प्रिय--

महागौरी का प्रिय फूल मोगरा माना जाता है। इसके अलावा गुड़हल, गुलाब भी अर्पित करना चाहिए। महागौरी को हलवा का भोग लगाना चाहिए।  काले चने माताजी को प्रिय हैं इसलिए चने या इससे बने खाद्य पदार्थ का भोग लगाना चाहिए। माँ शक्ति के इस स्वरूप की पूजा में हलवा, पूड़ी और नारियल का भी भोग लगाना चाहिए।

 

 महागौरी स्तोत्र--

                      !! ध्यान !!

 वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहारूढा चतुर्भुजा महागौरी यशस्विनीम्॥

पूर्णन्दु निभाम् गौरी सोमचक्रस्थिताम् अष्टमम् महागौरी त्रिनेत्राम्।

वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।

मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् त्रैलोक्य मोहनम्।

कमनीयां लावण्यां मृणालां चन्दन गन्धलिप्ताम्॥

         

                !! स्तोत्र पाठ !!

सर्वसङ्कट हन्त्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।

ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदायनीम्।

डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यमङ्गल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।

वददम् चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥


             

             देवी महागौरी का कवच

ॐकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजम् मां, हृदयो।

क्लीं बीजं सदापातु नभो गृहो च पादयो॥

ललाटं कर्णो हुं बीजम् पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो।

कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥


              

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