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डॉ.सचिन बाजीराव खंडारे के कार्यों को सलाम



मुंबई। मेडिकल और चिकित्सा को अपना प्रोफेशन बनाने के इच्छुक विद्यार्थियों ने जब कभी भी डॉ.सचिन बाजीराव खंडारे से आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए मार्गदर्शन मांगा तो उन्होंने जिस प्रकार से नि:स्वार्थ भाव से उनका मार्गदर्शन  किया।उसी का परिणाम है कि आज हजारों विद्यार्थी डॉक्टर और इंजीनियर बन चुके हैं।वहीं कोविड-19में जब लोग अपने घरों में करोना के डर से कैद थे उस समय उन्होंने अपने प्राणों की परवाह किये बिना यहाँ तक की ड्राइवर न उपलब्ध होने पर स्वयं एम्बुलेंस चलाकर करोना पाजिटिव मरीजों को अस्पताल पहुंचाकर उनका इलाज करवाया और उन्हीं की वजह से सीरीयस पेशेंट भी नार्मल हुए। डॉ.साहब मूलत:मराठी भाषी हैं लेकिन उन्हें सभी अपना मानते हैं और वे भी सभी को अपना मानते हैं।उन्होंने महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के लिए जो महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं वह काबिले तारीफ़ है।उनके कार्यों की प्रशंसा करते हुए अकादमी के तत्कालीन कार्याध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार,' नूतन सवेरा' के संपादक और हिंदी ब्लिट्ज के संपादक रह चुके स्मृतिशेष  नंदकिशोर नौटियाल ने उनके प्रति सार्वजनिक रूप से  कृज्ञता ज्ञापित की थी वह सचमुच में डॉ.साहब के हिंदी प्रेम के प्रति कृतज्ञता थी।डॉ.साहब भले ही महाराष्ट्र के अकोला जिले  के सुपुत्र हैं लेकिन देशभर के लोग उन्हें अपना मानते हैं। समाजसेवा के पैरोकार डॉ. सचिन बाजीराव खंडारे ने इस वर्ष कुल 1111वृक्ष लगाकर  अपनी वृक्षारोपण की नेक भावना को जारी रखा है। वैसे अकोला जिला हो या मुंबई उपनगर के परिसर हों वे वृक्षारोपण, शैक्षणिक, सामाजिक एवं विभिन्न  चिकित्सा शिविरों के माध्यम से लोगों की नि:स्वार्थ भावना से  सहायता करते ही हैं।वे एम.एस.डब्लू (समाजसेवा) में शोध कर चुके हैं।वे उच्च शिक्षित तो हैं ही साथ ही उनके बहुत से पेपर प्रस्तुत (पर्जेंट )एवं प्रकाशित (पब्लिस) हुए हैं।वे कई विषय से एम.ए.और एल.एल.बी. भी हैं शोध में किसानों के विषय में चिंतन करने वाले और विशेष कर अकोला जिले में किसानों की आत्महत्या पर विराम लगाने की उनकी महत्ती भूमिका रही है। डॉ.सचिन बाजीराव खंडारे  के हृदय में पर्यावरण की रक्षा कर सर्वत्र वृक्षों के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों के लिए पेड़ लगाने की भावना भी है। आज के इस स्वार्थी युग में बिना किसी पब्लिसिटी और स्वार्थ के लोगों की सहायता करने वाले खंडारे परिवार जैसे नि:स्वार्थी विरले ही होंगे। उनके द्वारा आयोजित प्रत्येक हेल्थ कैंप (स्वास्थ्य शिविर)को सफल बनाने का श्रेय उनकी चिकित्सक पत्नी डॉ.निवेदिता मैडम को है।वे जब से डॉक्टरी की पढ़ाई कर रही थीं, तभी से ऐसे शिविरों में सक्रिय हैं।डॉ.साहब के पिता बाजीराव खंडारे एवं स्मृतिशेष पूज्यनीय माता वत्सला बाजीराव खंडारे के पुण्य कर्मों एवं उनके  परिश्रम का ही प्रभाव है कि आज खंडारे परिवार के बेटे उच्च पदस्थ अधिकारी, तो बहु चिकित्सक (डॉ.) हैं एवं पोते  तुषार भी चिकित्सक डॉ. (एम.बी.बी.एस) अंतिम वर्ष  की पढा़ई कर रहे हैं।डॉ.साहब की भतीजी पूर्वा नितीन खंडारे ने एच.एस.सी.(बारहवीं) विज्ञान से 81.67%अंक से इसी वर्ष और सुपुत्र यशराज सचिन खंडारे ने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है। बहुत ही अच्छे विद्यार्थी यशराज  विज्ञान विषय के साथ  कॉलेज में प्रवेश ले चुके हैं।वे भी अपने माता-पिता की तरह अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखना तो  चाहते ही हैं।साथ ही घर के दरवाजे पर स्वयं भी डॉक्टर बनने पर नेमप्लेट पर डॉ.खंडारेस लिखवाना चाहते हैं।अर्थात माता -पिता और पुत्र तीनों लोगों के नाम के आगे डॉक्टर लिखा हुआ उन्हें अच्छा लगेगा। वैसे सर्व विदित है कि वे अपने नाम के अनुरूप ही यश प्राप्त करते आ रहे हैं और आगे भी करते रहेगें।वास्तव में पेड.-पौधे लगाने वाले एवं प्राणियों को पालने के शौकीन लोग बहुत ही संवेदनशील  और शांतिपूर्ण व्यक्ति होते हैं। ऐसा खंडारे परिवार से मिलकर लगता है। शायद यही कारण है कि डॉ.साहब विद्यार्थियों, किसानों, मजदूरों ,गरीबों, बेरोजगारों के साथ ही पेड़-पौधे,पशु-पक्षी और ऐतिहासिक विरासतों के सबसे बड़े हितैषी हैं। उनका  परिवार जिस अकोला महाराष्ट्र राज्य का है।वह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक, औद्योगिक और कृषि प्रधान शहर है जो मध्य भारत के विदर्भ क्षेत्र में स्थित है। यह महाराष्ट्र राज्य की राजधानी मुंबई से लगभग 600किमी पूर्व में स्थित है।

 अकोला जिला बरार प्रांत के बाकी हिस्सों के साथ महाभारत में वर्णित विदर्भ के पौराणिक साम्राज्य का हिस्सा था। बरार अशोक के शासनकाल (272 से 231 ईसा पूर्व) के दौरान मौर्य साम्राज्य का भी हिस्सा था।  धर्मनिरपेक्षता डॉ. साहब के स्वभाव से झलकती है।शायद यह अकोला का प्रभाव ही हो क्योंकि अकोलावासी समाजसेवी, जागरूक, शिक्षित,स्वाभिमानी, कर्तव्य निष्ठ और त्यागी  होते हैं। उनके मुंबई विद्याविहार के पड़ोसी समाजसेवी कृष्णा आण्णा नलावडे एवं उनकी पत्नी मनिषा कृष्णा नलावडे का कहना है कि काश!डॉक्टर साहब पहले मिले होते ।अर्थात वे डॉ. खंडारे के मानवहित के कार्यों की प्रशंसा करते हुए नहीं थकते हैं और कहते हमारे घर में डॉ साहब की वजह से चिकित्सक बनने की शुरूवात हो चुकी है।शायद इसीलिए मेरे मन से एक ही आवाज निकलती है -मानवसेवी हैं तो बहुत लेकिन डॉक्टर सचिन बाजीराव खंडारे जैसा कोई नहीं है।

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