मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ
देश के गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के छत्रप अमित शाह 2024 के लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को घेरने में जितना राजनैतिक रणकौशल दिखा रहे हैं, उससे कम भाजपा के भीतरी राजनीति में अपना दबदबा बनाये रखने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके गृह क्षेत्र गोरखपुर में घेरने में लगा रहे हैं।
कांग्रेस के साथ बन रहे गठबंधन "इंडिया" को घेरने के लिए भाजपा की टीम गुजरात के रणनीतिकारों ने जैसे अपने गठबंधन "एनडीए" में मित्र दलों की संख्या बढ़ाई है। ठीक वैसे ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके गृह क्षेत्र में घेरने का हर तिकड़म कर रहे हैं। बताते हैं कि भाजपा में हिंदुत्ववादी चेहरे के रूप में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने जो प्रतिष्ठा बनाई है वह अमित शाह एंड कंपनी को हजम नहीं हो पा रही है। इसी लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दबाव में योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद टीम गुजराज योगी को बार-बार उनके गृह क्षेत्र में घेरेबंदी की, लेकिन अभी तक उनका कोई मोहरा सफल नहीं हो पाया। सबसे पहले गोरखपुर शहर के पूर्व विधायक शिवप्रताप शुक्ल को राज्यसभा भेज कर ब्राह्मण बनाम ठाकुर के भेद को बढ़ाने का चाल चली गई। जब यह चाल फेल हो गई तो शिवप्रताप शुक्ल को केंद्रीय मंत्रिमंडल का सदस्य बनाया गया। योगी के परंपरागत विरोधी पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व वर्तमान रक्षा मंत्री के विश्वस्त गोरखपुर निवासी रामपतिराम त्रिपाठी को बगल के जिले गोरखपुर से 2019 में लोकसभा का टिकट देकर सांसद बनवाया गया। 2022 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहते थे। उनके लोगों ने स्थानीय संगठन के साथ सामंजस्य भी बना लिया था। लेकिन अयोध्या से चुनाव जीतने के बाद योगी की छवि अन्तर्राष्ट्रीय न हो जाय इस डर से पार्टी नेतृत्व ने उन्हें अयोध्या से नहीं लड़ने दिया। वाराणसी और मथुरा को लेकर भी योगी के लड़ने की चर्चा हुई जो फलीभूत होने के पहले ही ध्वस्त कर दिया गया। इसके बाद भी योगी नहीं घिरे तो शिवप्रताप शुक्ल को राज्यपाल बना कर पुनः एक और शक्तिकेन्द्र बनाने की असफल कोशिश हुई। गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ के लड़ने से तत्कालीन वर्तमान विधायक राधा मोहनदास अग्रवाल का टिकट काट दिया गया। उसके पहले 2017 से 2022 तक राधा मोहन दास को पार्टी ने केवल विधायक बना कर रखा।
राधामोहन दास अग्रवाल को राज्यसभा सदस्य बन कर केरल का सह प्रभारी और अंडमान निकोबार का प्रभारी बनाया गया। उनका कद बढ़ने लगा। चूंकि भाजपायी रणनीतिकार यह भली भांति जानते हैं कि योगी को घेरने के लिए आर्थिक और चारित्रिक ईमानदार व्यक्ति को ही हथियार बना कर रोका जा सकता है। संयोग से राधामोहन दास अग्रवाल जातिवाद के आरोप से भी मुक्त हैं। विधानसभा में रहते हुए विरोधी पार्टी की सरकारों को नाकों चने चबवा देते थे। लेकिन योगी आदित्यनाथ का मुंह पर भरपूर आदर करते हुए उनके प्रति प्रत्यक्ष हमलावर नहीं रहे।उनकी विनम्रता, कठिन परिश्रम और उनका अध्ययन उनके लिए वरदान और टीम गुजरात के लिए हथियार बन गया।
पिछले महीने गोरखपुर दौरे पर आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोरखनाथ मंदिर नहीं गये। यह अपने आप में आश्चर्यजनक घटना थी। ठीक इसके उलट वे केंद्रीय राज्य मंत्री पंकज चाैधरी के घर गये। पंकज चौधरी भाजपा की आंतरिक राजनीति में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के करीबी देवरिया के सांसद रामपतिराम त्रिपाठी के शिष्य माने जाते हैं। अर्थात योगी विरोधी खेमे में उनकी गिनती होती है। सूत्रों की माने तो पुराने गोरखपुर मंडल में आने वाले जिले के कथित योगी विरोधी एक ब्राह्मण सांसद को केंद्र में मंत्री का पद मिलना पक्का माना जा रहा है। कुल मिला कर भाजपा की टीम गुजरात पार्टी के बाहर कांग्रेस को घेरने की जितना कोशिश कर रही है उससे ज्यादा कहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घेरेबंदी को लेकर सतर्क है।
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