भक्तों ने बाबा विश्वनाथ संग अबीर गुलाल की खेली होली
वाराणसी। शुक्रवार को रंगभरी एकादशी पर श्रीकाशी विश्वनाथ और माता गौरा की विदाई के अलौकिक झांकी निकली। बाबा भोलेनाथ टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास यानी माता गौरा के मायके से काशी विश्वनाथ माता गौरा व पुत्र गणेश संग विदा कराकर निकले। काशी इस आलौकिक झांकी की साक्षी बनने काशीवासी उमड़ पड़े थे।
टेढ़ीनीम स्थित श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डा. कुलपति तिवारी के आवास स्थित माता गौरा के मायके में भोलेनाथ गुरूवार को ही पहुंच चुके हैं।इस दौरान मंडप मंगलगीतों से गूंजता रहा। शहनाई की मंगलध्वनि, ढोल की थाप, मजीरे की खनक, डमरूुओं के निनाद, शंख ध्वनियों के बीच भोलेनाथ माता गौरा को रजत पालकी पर लेकर अपने स्वर्णमयी धाम के लिए प्रस्थान किए। माता गौरा की गोद में प्रथम पूज्य श्रीगणेश बाल रूप में विराजमान थे। इसी के साथ ही प्राचीन नगरी काशी में रंगोत्सव का प्रारंभ हुआ । रंगभरी एकादशी के इस शुभ अवसर पर काशीपुराधिपति के भाल पर काशीवासी अबीर-गुलाल लगाकर विश्व के नाम से होली खेलने की अनुमति लिया। प्राचीन काल से यह परंपरा चली आ रही है।
महंत आवास पर सुबह बाबा के साथ माता गौरा की चल प्रतिमा का पंचगव्य, पंचामृत स्नान के बाद दुग्धाभिषेक किया गया। गुजरात से आये खास खादी का राजसी वस्त्र और शाही पगड़ी बाबा धारण किया। माता गौरा बरसाने से आया घाघरा पहन, सोलहों श्रृंगार रचाकर दुल्हन के लिबास में भगवान श्रीगणेश को गोद में लेकर रजत पालकी में विराजी। अबीर- गुलाल की बारिश के बीच बाबा की पालकी महंत आवास से निकलते ही समूचा वातावरण हर-हर महादेव और नमः पार्वती पतये के उद्घोष से गुंजायमान हो उठा। जबर्दस्त सुरक्षा व्यवस्था के बीच काशी के राजा की पालकी यात्रा टेढ़ीनीम की गलियों से होते हुए दशाश्वमेध मार्ग तक पहुंची।
पालकी के यहां पहुंचते ही बेकाबू भीड़ से बाबा और माता गौरा के गगनभेदी उद्घोष से तेज हो गई। फिर बाबा की यात्रा डेढ़सी पुल होते हुए पुनः विश्वनाथ गली में प्रवेश कर गई। इस दौरान सड़कों और गलियों में भीड़ ठसाठस रही। आसपास के मकानों की छतों से गुलाब की पंखुड़ियों, फूलों और अबीर गुलाल की बारिश हो रही थी। झूमते-नाचते भोलेनाथ के भक्तों की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा। कोई पालकी यात्रा में शामिल होकर, कोई अबीर-गुलाल चढ़ाकर और कोई फूल बरसाकर इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनकर अपनी धन्यता का अहसास कर रहा था।
अधिकतर लोग इस अनूठे पल को अपने-अपने कैमरों में कैद कर रहे थे। बाबा की चल प्रतिमा के साथ माता गौरा, श्रीगणेश को लेकर श्रीकाशी विश्वनाथ अपने स्वर्णमयी धाम में प्रवेश किया। उनकी प्रतिमा धाम के गर्भगृह में स्थापित की गई। जहां बाबा सपरिवार भक्तों को दर्शन दे रहे थे।
मान्यता है कि काशी भगवान शिव की ही बसाई नगरी है। उनके पु़त्र श्रीगणेश की प्रथम पूजा के बाद ही हिंदू धर्म के लोग विवाह आदि से लगायत तमाम मांगलिक कार्य करते हैं। लेकिन आज यह अद्भुत दृश्य दुनिया को देखने को मिला कि श्रीगणेश अपनी माता की गोद में विराजमान थे और काशी पुराधिपति गौरा को विदा कराकर अपने स्वर्णमयी धाम ले जा रहे हैं। अब यह रजत प्रतिमाएं गर्भगृह में रख दी गईं हैं। भोर में मंगला आरती होने तक भगवान शिव परिवार सहित भक्तों को दर्शन देंगे।
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