मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सभी सीटें जीतने का शिगूफा छोड़वा कर भारतीय जनता का केंद्रीय नेतृत्व सुस्त बैठ गया। जिसका परिणाम है कि लोकसभा चुनाव के पहले यूपी में होने वाले नगर निकाय के चुनाव की तैयारी के तहत कार्यकर्तओं में दिखने वाली चुस्ती नदारद है। नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण के मुद्दे पर यूपी सरकार द्वारा गठित आयोग ने अपनी रिपोर्ट समय से पहले कोर्ट में दाखिल कर दिया है। अब आगे का कार्य उच्य न्यायालय को करना है। जिसने 24 मार्च को सुनवाई की तिथि निर्धारित किया है। यूपी में नया प्रदेश अध्यक्ष और नया महामंत्री संगठन देने के छह माह बाद भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व मानो विश्राम पर चला गया है। केंद्रीय नेतृत्व द्वारा यूपी में जनपद स्तरीय, राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय पहलुओं के अलावा भौगोलिक, सामाजिक व व्यवहारिक स्तर पर सूक्ष्म अध्ययन का अभाव सा दिखाई दे रहा है। राज्य स्तर पर मार्गदर्शन मंडल में झोंक दिये गये कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं का कहना है कि केंद्रीय टीम की ओर से राज्य इकाइयों के साथ समन्वय बना कर रणनीतिक को अमलीजामा पहनाने का काम राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष के हिस्से में आता है।पता नहीं क्यों उत्तर प्रदेश को लेकर वह उतना रफ्तार नहीं दे पा रहे हैं जितना 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले राष्ट्रीय महामंत्री व यूपी प्रभारी बना कर भेजे गये अमितशाह और यूपी भाजपा के चुनाव प्रबंधन में भेजे गये सुनील बंसल की जो टीयूनिंग बनी वह दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है।टीम नरेंद्र मोदी की कल्पना को अमितशाह के माध्यम से धार देते हुये सुनील बंसल ने पहली बार भाजपा के वाररूम की ताकत से यूपी को रूबरू कराया।दिल्ली नेतृत्व यूपी में 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अकेले मिली 71 सीटों के लिये राष्ट्रीय महामंत्री व यूपी प्रभारी अमितशाह के साथ तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रहे डॉ लक्ष्मीकांत बाजपेयी, प्रदेश संगठन महामंत्री राकेश जैन के अलावा चुनाव प्रबंधन में लोहा मनवाने वाले सुनील बंसल की टीयूनिंग को दिया था। वर्तमान में परिपेक्ष्य कुछ भी हो भाजपा की राष्ट्रीय टीम यूपी में सांगठनिक दृष्टि से दूर-दूर तक वैसा समन्वय नहीं स्थापित कर पाया है।ये संयोग ही है राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुये जेपी नड्डा अपने गृह प्रदेश हिमांचल में हुये विधानसभा चुनाव की हार से आज तक उभरते नहीं दिख पाये। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो या टीम गुजरात से सेटिंग जिस भी कारण उन्हें सेवा विस्तार मिल गया लेकिन वह आज पुराना वाला ऊर्जामयी जोशदार लय नहीं पकड़ पा रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भले ही सामर्थ्यवान विपक्ष नहीं है फिर भी यह तेजहीन लक्षण 2024 के लोकसभा चुनाव के लिये भाजपा के केंद्रीय रणनीतिकारों की चिंता का सबब बन गया है। इसका इलाज मात्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमितशाह की कर पायेगी।
उत्तर प्रदेश में नये प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह और नये महामंत्री संगठन धर्मपाल के कार्यकाल को छह माह बीत जाने के बाद भी राष्ट्रीय नेतृत्व के जिम्मदार उत्तर प्रदेश भाजपा की नई टीम को अंतिम रूप नहीं दे पाये। नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि राष्ट्रीय नेतृत्व में एक महत्वपूर्ण पूर्णकालिक नेता चाहते हैं कि यूपी भाजपा की टीम में कुछ उनके चाहने वालों का नाम जोड़ लिया जाय। जबकि जिनको धरातल पर काम करना है वह कम से कम आधा दर्जन ऐसे परिश्रमी और जाने-समझे लोगों को रखना चाहते हैं जो 2024 तक बिना रुके, बिना थके जूझने का जज्बा रखते हैं।यूपी में जिन्हें काम करना है यदि उनकी पसंद टीम उन्हें नहीं मिलेगा तो 2024 का लक्ष्य धरातल पर उतरना टेढ़ी खीर हो जायेगी। इसी द्वंद्व के कारण लाखों कार्यकर्ता किम कर्तव्य विमूढ़ हो गये हैं। प्रदेश के प्रमुख नेता राज्य इकाई में फिट होने की फिकर में मरे जा रहे हैं। उसके बाद एमएलसी के नामों का चयन है, क्षेत्रवार नये क्षेत्रीय अध्यक्ष बनाने, उनकी टीम की रचना, फिर बहुत जिलों-महानगरों में सकुशल नेतृत्व परिवर्तन करना बड़ी चुनौती का रूप ले रही है। प्रदेश में आगामी नगर निकाय, सहकारिता, कैंटोनमेंट बोर्ड के चुनाव के अतिरिक्त राज्य के निगम, आयोग में कार्यकर्ताओं का समायोजन बड़ा विषय होता जा रहा है। इन सब के बीच न जाने कहां से यह खबर फैल गयी कि यूपी भाजपा की टीम फाइनल हो गयी है लेकिन राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष द्वारा समय रहते टीम पर अंतिम मुहर न लगाने के कारण यूपी भाजपा की नई टीम का गठन अधर में लटक गया है। राजधानी के राजनैतिक गलियारों में राजनैतिक विश्लेषकों के बीच चर्चा है कि यूपी भाजपा की नई टीम के गठन से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बड़ी सतर्कता से दूरी बना लिये है। मुख्यमंत्री मंत्री योगी की छवि ज्यों-ज्यों देश और दुनिया में फैल रही है वह सधे राजनेता की तरह खुद को अनावश्यक हस्तक्षेप से अलग रखने में कामयाब हुये हैं। उसके बाद भी भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व यूपी भाजपा नेताओं को बार-बार दिल्ली तलब कर खम्भे पर चढ़ने-उतरने वाली परिणामहीन मेहनत करवा रही है।
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