वाराणसी। काशी के कण-कण में भगवान शंकर विराजमान हैं। भोले के इस धाम में कई ऐसे मन्दिर हैं जिसके चमत्कार के बारे में कम ही लोग जानते होंगे। ऐसा ही अनोखा और चमत्कारिक धाम वाराणसी के केदारखण्ड में स्थित श्री तिलभंडेश्वर महादेव है। मान्यताओं के मुताबिक, काशी के इस अद्भुत शिवलिंग की आकृति हर दिन एक तिल बढ़ती है। शिव पुराण में भी इसका जिक्र है। भक्तों का ऐसा मानना है कि सावन में यहां बाबा को बेलपत्र, धतूरा,भांग और जल अर्पण करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
जमीन से लगभग 100 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस शिवलिंग के दर्शन को दूर-दूर से श्रद्धालू आते हैं। काशी का ये शिवलिंग स्वयंभू है। सावन के महीने के अलावा प्रत्येक सोमवार को भी यहां भक्तों की भीड़ होती है। महाशिवरात्रि पर दोपहर के समय यहां से भव्य शिव बारात भी निकली जाती है। जो काफी प्रसिद्ध है। जिसमें स्थानीय लोगो के साथ ही देश विदेश के लोग भी बाराती के रूप में शामिल होते है।
मंदिर के महंत स्वामी बताते हैं कि प्रयाग संगम और दशाश्वमेध में हजार बार स्नान करने का जितना पुण्य है, वह इस महाशिवलिंग के एक बार स्पर्श और दर्शन से प्राप्त होता है।
मंदिर के महंत के अनुसार तिलभांडेश्वर महादेव की उतपत्ति कब और कैसे हुई यह कोई नही बता सका। जानकार बताते है कि शिवलिंग अनादिकाल से विद्यमान है। पुराणों वे अनुसार स्वंयम्भू तिलभांडेश्वर शिवलिंग महान ऋषि विभाण्ड के तपोस्थली के नाम से जाना जाता है। ऋषि विभाण्ड यही पर पूजन-अर्चन, अनुष्ठान, साधना करते थे।
प्राचीन इतिहास के अनुसार जब औरंगजेब काशी आया तो उसने यहाँ के मंदिरों के बारे में परीक्षा लेनी चाही की इनके पत्थरों में शक्ति है या नही। औरंगजेब ने अपने सैनिकों को मंदिर ध्वस्त करने की नीयत से तिलभांडेश्वर महादेव भेजा। सैनिको ने शिवलिंग पर जैसे ही फावड़ा चलाया उसमे से रक्त की धारा बहने लगी। इस अद्भुत चमत्कार को देख कर औरंगजेब के सैनिक यहां से पलायित हो गए।
तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर के महंत बताते हैं कि अंग्रेज किसी चमत्कार में विश्वास नहीं रखते थे। यह बात करीब 250 साल पुरानी है। अंग्रेजों को जब पता चला कि यह शिवलिंग हर दिन तिल बराबर बढ़ता है तो उन्होंने इसकी सत्यता जांचनी चाही। इसके लिये अंग्रेजों ने अपने कुछ लोग और काशी के प्रबुद्ध लोगों की एक कमेटी बनाई। कमेटी ने सच जानने के लिये शिवलिंग पर नारा बांध कर गर्भगृह को 24 घंटे के लिए सील कर दिया। दोबारा जब गर्भगृ़ह खोला गया तो नारा टूटा हुआ मिला। उस घटना के बाद इस बात को सभी नहीं मान लिया। इसके बाद काशी के विद्वानों ने मंदिर का नवग्रह बंधन किया।
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