आज दुनिया में लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर काफी सजग रहते हैं। इसीलिए वे अपना और अपने परिवार का हेल्थ इंश्यूरेंस या मेडिक्लेम करवाते हैं। शहर हो या गांव हो सभी बुद्धिजीवी व्यक्ति स्वास्थ्य बीमा का लाभ जरूर लेना चाहते हैं और अधिकतर लोग इसका लाभ उठा भी रहे हैं। बीमा कंपनिया बीमा देते समय तो बड़े-बड़े वादे करती हैं परंतु जब उनके पास क्लेम की बारी आती है तो कही तरह के नियमों की दुहाई देकर पल्ला झाड़ने का प्रयास करते हैं। ऐसा ही एक ममला पिछले दिनों अहमदाबाद में देखने को मिला जब एक व्यक्ति का क्लेम इसलिए रद्द किया गया कि वह शाकाहारी है।
क्या किसी शख्स के मेडिक्लेम को सिर्फ इसलिए खारिज किया जा सकता है कि वह शाकाहारी है? एक बीमा कंपनी ने ऐसा ही किया। कंपनी का तर्क था कि वे शाकाहारी होने के कारण शख्स बीमार हुआ, इसलिए उसके मेडिक्लेम को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर कमीशन ने कंपनी की इस दलील को खारिज कर दिया और उसके ब्याज समेत मेडिक्लेम देने का आदेश दिया। कमीशन ने कहा कि किसी का शाकाहारी होना गुनाह नहीं है और कंपनी ने उसके मेडिक्लेम के दावे को खारिज करने के लिए गलत तर्क दिया है।
मीत ठक्कर का अक्टूबर 2015 में एक हफ्ते तक इलाज चला था। उन्हें चक्कर आ रहे थे, मितली आ रही थी, वह कमजोरी महसूस कर रहे थे और शरीर के हिस्से में भारीपन लग रहा था। उन्हें Transient iscaemic attack (ITA) की शिकायत थी। उनका होमीसिस्टीन लेवल 23.52 पाया गया जो अमूमन पांच से 15 के बीच रहता है। उनका मेडिकल बिल एक लाख रुपये का बना। लेकिन इंश्योरेंस कंपनी ने उनके मेडिक्लेम को खारिज कर दिया। कंपनी ने डॉक्टर की एक रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि विटामिन बी12 (B12) की कमी से ठक्कर को यह समस्या पैदा हुई थी। वेजिटेरियन होने के कारण ठक्कर के शरीर में बी12 की कमी हो गई थी।
कमीशन ने क्या दिया फैसला
ठक्कर ने इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ अहमदाबाद जिले के कंज्यूमर डिस्प्यूट रेड्रेसल कमीशन (Consumer Dispute Rederessal Commission) में शिकायत की। सुनवाई के बाद कमीशन ने कहा कि शाकाहारी लोगों को बी12 विटामिन की कमी हो सकती है लेकिन ठक्कर के मामले में यह नहीं कहा जा सकता है कि इस कारण उन्हें यह समस्या हुई या इसमें उनकी कोई गलती थी। डॉक्टर ने कहा था कि अक्सर वेजिटेरियन लोगों को बी12 की कमी हो जाती है लेकिन इंश्योरेंस कंपनी ने इसकी गलत व्याख्या की और मेडिक्लेम को रिजेक्ट कर दिया।
कमीशन ने कंपनी को आदेश दिया कि वह ठक्कर को एक लाख रुपये की रकम का भुगतान नौ फीसदी ब्याज (interest) के साथ करे। ब्याज अक्टूबर 2016 से लागू होगा जब ठक्कर ने शिकायत दर्ज की थी। कंपनी को साथ ही ठक्कर को 5,000 रुपये भी देने होंगे। कमीशन ने कहा कि ठक्कर को हुई मानसिक पीड़ा और लीगल खर्च के लिए कंपनी को यह राशि देनी होगी।
साभार
(नोट- इस लेख से किसी भी बीमा कंपनी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाना या उनको ठेस पहुंचाना नहीं है)
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