कॉलेजियम द्वारा भेजी सिफारिशों वाली याचिका सूचीबद्ध करने पर सीजेई की सहमति
जताई प्रशासनिक आदेश पारित करने की प्रतिबद्धता
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय के नए मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या को लेकर गंभीर हैं। लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए मुख्य न्यायाधीश अदालतों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों को अति शीघ्र भरने को तत्पर नजर आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के लिए `सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम' द्वारा भेजी गई सभी सिफारिशों को तुरंत अधिसूचित करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग करने वाले एक मामले की सुनवाई के लिए सहमति जता दी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली और जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा मामले का उल्लेख करने के बाद मामले को सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया गया है।
बता दें कि अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस मामले का जिक्र करते हुए कहा, 'एक याचिका २०१८ में दायर की थी और कुछ भी सूचीबद्ध नहीं था। उन्होंने सरकार के लिए परमादेश की (श्aह्aस्ल्े) मांग की थी।' इस पर सीजेआई ने कहा, 'इसे सूचीबद्ध किया जाएगा। मैं प्रशासनिक आदेश पारित करूंगा।'
ये है पूरा मामला
‘एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) ने एक याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि केंद्र, उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों पर अनिश्चित काल तक मौन बैठा रहा है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति को अधिसूचित करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है, जिनके नाम कॉलेजियम द्वारा पहले ही सर्वसम्मति से दोहराए जा चुके हैं और सरकार के पास लंबित हैं। इसमें विभिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा भेजी गई सिफारिशों को अधिसूचित करने के लिए सरकार को निर्देश देने की भी मांग की गई थी और सिफारिशें प्राप्त होने के छह सप्ताह बीत जाने के बावजूद केंद्र ने जवाब नहीं दिया है।
सही नहीं है संवैधानिक पदों का खाली रहना
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया था कि सरकार की `निष्क्रियता' और `न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में राजनीतिक रूप से प्रेरित हस्तक्षेप' के कारण महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों को खाली नहीं छोड़ा जा सकता है। एनजीओ ने कई सिफारिशों पर प्रकाश डाला, जो कॉलेजियम द्वारा भेजी गई थीं, लेकिन सरकार ने उन पर कार्रवाई नहीं की।
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