बता दें कि जीआई टैग को अंग्रेजी में Geographical Indications tag कहते हैं. हिंदी में इसे भौगोलिक संकेतक के नाम से भी जानते हैं. किसी भी क्षेत्र के उत्पाद ,जिससे उस क्षेत्र की पहचान हो, जब उस उत्पाद से उस क्षेत्र की प्रसिद्धि देश के कोने कोने में फैलती है, तब उसे प्रमाणित करने के लिए जीआई टैग की जरूरत होती है। संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण के लिए 1999 में अधिनियम पारित किया था, जिसे ज्योग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड एक्ट के नाम से भी जानते हैं। उदाहरण के लिए आगरा को पेठा नगरी के नाम से भी जाना जाता है इसलिए अब सरकार ने आगरा के पेठे को भी GI टैग की लिस्ट में शामिल किया है।
जीआई टैग मिलने से यह होगा फायदा
जीआई टैग मिलने से कई सारे फायदे हैं। एक तो उस उत्पाद के लिए कानूनी सुरक्षा मिल जाती है। इसके साथ ही उस उत्पाद की विश्वसनीयता बढ़ जाती है। उत्पादक किसी भी अन्य देशों में इसे निर्यात कर सकते हैं जिससे घरेलू बाजारों से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उस उत्पाद की मांग बढ़ जाती है। साथ ही क्षेत्र की पहचान भी उस उत्पाद से होने लगती है। जीआई टैग मिलने से व्यापारियों को एक होल मार्क मिल जाता है, जिसका इस्तेमाल वह पैकिंग पर भी कर सकते हैं। इससे यह फायदा है कि कोई भी अन्य राज्य उनके उत्पाद की नकल नहीं कर सकता।
जीआई टैग के लिए जल्द करेंगे आवेदन
भगत सिंह पेठा कुटीर एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश अग्रवाल बताते हैं कि हमने कई बार पहले भी आगरा के पेठे को पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग की आवेदन किया था, लेकिन किन्हीं कारणों से जीआई टैग अब तक नहीं मिला है.अब योगी सरकार इस ओर कदम बढ़ा रही है तो आगरा के पेठे को नई पहचान मिलेगी. हम मिलकर जल्द ही जीआई टैग के लिए आवेदन करेंगे. एक समय ऐसा भी था जब कोविड-19 के दौर में पेठा कड़वाहट के दौर से गुजरा था, लेकिन अब हालात सामान्य है. अगर आगरे के पेठे को GI टैग मिल जाता है, तो उसकी ख्याति दुनिया के कोने कोने तक पहुंच जाएगी. व्यापारियों का भी फायदा होगा साथ में आगरा शहर का नाम भी रोशन होगा.
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