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यूक्रेन से पहले कब-कब विदेशों से भारतीयों को बचाने के लिए चले थे अभियान?

 

नई दिल्ली। यूक्रेन से लौटे छात्र भारत सरकार यूक्रेन और रूस के बीच जारी जंग में फंसे भारतीय छात्रों को निकालने की कोशिश कर रही है. लेकिन इन तमाम प्रयासों के बीच सोशल मीडिया पर एक बहस छिड़ी हुई है कि क्या भारत सरकार ने अपने नागरिकों को बचाने की दिशा में सही समय पर सही कदम उठाए हैं? इस मौके पर इससे पहले इस तरह की स्थितियों में भारतीय लोगों को बचाने के लिए चलाए गए अभियानों की भी चर्चा की जा रही है. यूक्रेन युद्ध से पहले भारत सरकार ने तीन मौकों पर विदेशों से भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए बचाव अभियान चलाए हैं. इनमें पहला मौका साल 1990 के अगस्त महीने में आया जब इराक़ ने कुवैत पर कब्ज़ा किया था. इसके बाद साल 2006 के लेबनान युद्ध में भारत ने भारतीय और श्रीलंकाई नागरिकों को बचाने के लिए "ऑपरेशन सुकून" चलाया था. साल 2011 में हुए लीबियाई युद्ध के दौरान भारत ने 1,10,000 नागरिकों को "ऑपरेशन सेफ़ होम कमिंग" के तहत बचाया था.

कुवैत से कैसे बचाए गए थे भारतीय इराक़ ने साल 1990 के अगस्त महीने की दो तारीख़ को अपनी दक्षिण पूर्व सीमा से कुवैत पर हमला बोला था. उस वक़्त लगभग दो लाख भारतीय कुवैत में रह रहे थे. इस दौर में भारत के इराक़ के साथ अच्छे संबंध थे. ऐसे में भारतीय नागरिकों को इराक़ी सेना से किसी तरह का जोखिम नहीं था. लेकिन पैसे, खाने और दवाइयों की कमी के चलते भारतीय नागरिक अपने मुल्क भारत लौटना चाहते थे. उस समय वीपी सिंह भारत के प्रधानमंत्री हुआ करते थे और उनकी सरकार में विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल थे. ये समस्या खड़ी होने के बाद इंद्र कुमार गुजराल ने इराक़ी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन से मुलाक़ात की. इस बैठक में सद्दाम हुसैन ने भारतीय नागरिकों को कुवैत से निकालने की इजाज़त दे दी. लेकिन अमेरिका ने कुवैत के आसपास वाले जलक्षेत्र में किसी भी तरह की गतिविधि पर प्रतिबंध लगाया हुआ था. वहीं, दूसरी ओर इराक़ ने विमानों की लैंडिंग पर प्रतिबंध लगाया हुआ था. सिर्फ ज़रूरी सामान लाने वाले विमानों को बग़दाद और कुवैत में उतरने की इजाज़त थी. चूंकि भारत सरकार समुद्री रास्ते से भारतीय नागरिकों को बचाना चाहती थी, ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंध एक बड़ी समस्या थी.

लेकिन इसके बावजूद भारत ने एक योजना बनाई जिसके तहत 1.20 लाख से ज़्यादा भारतीयों को बसों के ज़रिए रेगिस्तानी इलाकों में 1120 किलोमीटर का सफर तय कराकर जॉर्डन लाया गया. इन लोगों को जॉर्डन में तात्कालिक रूप से रुकने दिया गया जिसके बाद उन्हें अम्मान और फिर मुंबई लाया गया. ये उन दिनों की बात है जब एयर इंडिया के पास कमर्शियल इस्तेमाल के लिए सिर्फ बोइंग 747 विमान थे. ऐसे में इंडियन एयरलाइंस द्वारा खरीदे गए एयरबस ए320 विमानों को इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया गया. लेकिन इंडियन एयरलाइंस ने जिन दो एयरबस ए 320 विमानों को ख़रीदा था, उनमें से एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. ऐसे में बचे हुए एक विमान से ये बचाव अभियान चलाया गया. इसके बाद अगले दो महीनों तक एयरबस ए320 ने लगातार प्रतिदिन 16-17 घंटों की उड़ान भरी. अक्टूबर के अंत तक 448 चक्कर लगाए गए. और खाड़ी क्षेत्र से 1,11,000 भारतीय नागरिकों को निकाला गया. उस दौर में यह सबसे बड़ा हवाई बचाव अभियान था जिसमें हज़ारों डॉलर का ख़र्च आया था. इस मिशन को वीपी सिंह, आईके गुजराल और नागरिक उड्डयन मंत्री आरिफ़ ख़ान ने मिलकर चलाया था. लेकिन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने कहा था कि "पूरा श्रेय इंद्र कुमार गुजराल को जाता है."


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